लिवर ट्रांसप्लांट: जब दवाइयाँ और जीवनशैली बदलाव पड़ जाएँ कमज़ोर

लिवर ट्रांसप्लांट: जब दवाइयाँ और जीवनशैली बदलाव पड़ जाएँ कमज़ोर

लखनऊ: गंभीर लिवर रोग से जूझ रहे लोगों के लिए लिवर ट्रांसप्लांट जीवनरक्षक विकल्प साबित हो सकता है। जब लिवर सही तरीके से काम करना बंद कर देता हैतो दवाइयाँ और जीवनशैली में बदलाव  पर्याप्त नहीं होते। ऐसे में लिवर ट्रांसप्लांट मरीजों को एक नई उम्मीद और जीवन देने का माध्यम बन जाता है। 


लिवर ट्रांसप्लांट एक शल्यक्रिया है जिसमें खराब हो चुके लिवर को स्वस्थ डोनर के लिवर से बदला जाता है। लिवर शरीर से विषैले तत्वों को निकालनेप्रोटीन बनाने और पाचन में मदद करने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। जब यह अंग असफल हो जाता है तो पूरा शरीर प्रभावित होता है। लिवर की एक अद्भुत विशेषता यह है कि यह स्वयं को पुनर्जीवित कर सकता है। इसी वजह से लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट में डोनर के लिवर का केवल एक हिस्सा मरीज को प्रत्यारोपित किया जाता है और कुछ ही हफ्तों में दोनों का लिवर पूर्ण आकार में वापस आ जाता है। 


बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटलनई दिल्ली के एचपीबी सर्जरी एवं लिवर ट्रांसप्लांटेशन विभाग के वाइस चेयरमैन एवं एचओडी  डॉ. अभिदीप चौधरी ने बताया कि हर लिवर के मरीज़ को ट्रांसप्लांट की आवश्यकता नहीं होती। यह तभी किया जाता है जब लिवर पूरी तरह काम करना बंद कर देता है। इसके प्रमुख कारणों में हेपेटाइटिस बी या सी से होने वाला सिरोसिसअल्कोहल से संबंधित लिवर रोगफैटी लिवरशुरुआती अवस्था का लिवर कैंसरजेनेटिक बीमारियाँ जैसे विल्सन डिज़ीज़ और हेमोक्रोमैटोसिसतथा शिशुओं में बिलियरी एट्रेशिया शामिल हैं। मरीज की गंभीरता का आकलन करने के लिए डॉक्टर ‘मेल्ड स्कोर’ का उपयोग करते हैंजहाँ अधिक स्कोर का मतलब अधिक गंभीर लिवर क्षति होती है।“ 


डॉ. अभिदीप ने आगे बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट दो प्रकार से किया जाता है – पहलाडीसीज़्ड डोनर ट्रांसप्लांटजिसमें अंग दान करने वाले मृत व्यक्ति के परिवार की सहमति से लिवर लिया जाता है। दूसरालिविंग डोनर ट्रांसप्लांटजिसमें जीवित रिश्तेदार (भारतीय कानून के अनुसार) अपना लिवर का हिस्सा दान करते हैं। यह तरीका इंतजार का समय घटाता है और सर्जरी को योजनाबद्ध तरीके से संभव बनाता है। यह शल्यक्रिया सामान्यतः से 12 घंटे तक चल सकती है। ऑपरेशन के बाद मरीज को कुछ दिन आईसीयू में रखा जाता है और लगभग से सप्ताह तक अस्पताल में निगरानी की जाती है। मरीज को आजीवन इम्यूनोसप्रेसिव दवाएँ लेनी पड़ती हैं ताकि नया लिवर शरीर द्वारा अस्वीकार न किया जाए। अधिकतर मरीज से महीने के भीतर अपनी सामान्य गतिविधियों में लौट सकते हैं।“ 


हालाँकि यह एक जटिल शल्यक्रिया है और इसमें संक्रमणबाइल डक्ट की समस्या या अंग अस्वीकृति जैसी जटिलताएँ हो सकती हैंलेकिन आधुनिक तकनीकों और प्रभावी दवाओं की मदद से सफलता दर में काफी वृद्धि हुई है। आज हजारों मरीज सफल लिवर ट्रांसप्लांट के बाद लंबा और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। 


लिवर ट्रांसप्लांट सिर्फ एक चिकित्सकीय प्रक्रिया नहीं हैबल्कि यह जीवन का दूसरा मौका है। यदि किसी को इसकी आवश्यकता हो सकती हैतो उन्हें विशेषज्ञ ट्रांसप्लांट सेंटर से संपर्क कर पात्रताप्रक्रिया और रिकवरी के बारे में जानकारी अवश्य लेनी चाहिए।

P.K. SHARMA

Blogging in difference subjects since 2012 and related many media companies, having experiences in this field about 12 years.

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