65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को गॉलब्लैडर कैंसर का अधिक खतरा

65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को गॉलब्लैडर कैंसर का अधिक खतरा

गॉलब्लैडर कैंसर एक गंभीर बीमारी है लेकिन यह अन्य कैंसर की तुलना में कम चर्चा में आता है इसलिए इसे अधिक ध्यान और जागरूकता की आवश्यकता है। भारत में 2022 में 21,780 नए गॉलब्लैडर कैंसर के मामले सामने आए जिससे यह चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है। इस बीमारी के हल्के लक्षण और तेजी से फैलने के कारण इसका समय पर पता लगना मरीजों की सेहत और जीवन बचाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 


गॉलब्लैडर कैंसर लिवर के नीचे स्थित गॉलब्लैडर में शुरू होता है। हालांकि यह दुर्लभ है इसका पता अक्सर एडवांस्ड स्टेज में ही चलता है जिससे यह और अधिक खतरनाक हो जाता है। गॉलब्लैडर के शरीर के अंदर गहरे स्थित होने के कारण शुरुआती ट्यूमर अक्सर अनदेखे रह जाते हैं जब तक कि वे गंभीर लक्षण न दिखाने लगें। 


यथार्थ अस्पताल ग्रेटर नोएडा के रोबोटिक और लैप्रोस्कोपिक जीआई-एचपीबी सर्जरी और ऑन्कोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉ. नीरज चौधरी कहते हैं “गॉलब्लैडर कैंसर का जल्दी पता लगाना और समय पर इलाज शुरू करना मरीजों के जीवन को बचाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस बीमारी के लक्षण अक्सर देर से उभरते हैं, जिससे इलाज में देरी हो सकती है। अगर शुरुआती चरण में ही इस बीमारी का पता लग जाए, तो इलाज के बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। 


गॉलब्लैडर कैंसर के कई जोखिम कारक हैं जिनमें गॉलस्टोन से होने वाली पुरानी सूजन प्रमुख है। महिलाओं में गॉलब्लैडर कैंसर अधिक पाया जाता है और उम्र के साथ इसका खतरा बढ़ता है। खासकर 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में। अधिक वजन भी इस बीमारी का खतरा बढ़ा सकता है। इसके अलावा, गॉलब्लैडर कैंसर का पारिवारिक इतिहास भी इसकी संभावना को बढ़ा सकता है।
शुरुआती स्टेज में गॉलब्लैडर कैंसर के लक्षण अक्सर नहीं दिखते लेकिन जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है कुछ लक्षण सामने आते हैं जैसे पेट दर्द (खासकर ऊपरी दाएं हिस्से में) पीलिया उल्टी सूजन और बिना वजह वजन घटना। गॉलब्लैडर कैंसर का पता लगाने के लिए आमतौर पर अल्ट्रासाउंड सीटी स्कैन और एमआरआई जैसी इमेजिंग टेस्ट किए जाते हैं इसके बाद बायोप्सी के जरिए कैंसर सैल्स की पुष्टि की जाती है। इसके अलावा लिवर फंक्शन और ट्यूमर मार्कर्स की जांच के लिए ब्लड टेस्ट भी किए जा सकते हैं। 


डॉ. नीरज चौधरी ने आगे कहा गॉलब्लैडर कैंसर के इलाज के विकल्प इसके स्टेज और मरीज की सेहत पर निर्भर करते हैं। शुरुआती स्टेज में मुख्य इलाज गॉलब्लैडर को सर्जरी से हटाना (कोलेसिस्टेक्टॉमी) होता है जबकि एडवांस्ड मामलों में लिवर के कुछ हिस्से और आसपास के टिश्यू को भी हटाना पड़ सकता है। सर्जरी के बाद बचे हुए कैंसर सैल्स को नष्ट करने के लिए रेडिएशन थेरेपी की जाती है। कैंसर के तेजी से बढ़ते सैल्स को खत्म करने के लिए केमोथेरेपी का उपयोग किया जाता है खासकर तब जब कैंसर गॉलब्लैडर से आगे फैल चुका हो। टार्गेटेड थेरेपी कैंसर सैल्स में विशिष्ट असामान्यताओं को निशाना बनाती है और उनके विकास और फैलने को रोकती है। 


गॉलब्लैडर कैंसर के मरीजों के लिए जल्दी पता लगना अत्यधिक मायने रखता है। नियमित जांच और जोखिम कारकों के बारे में जागरूकता से इसका पहले पता लगाया जा सकता है और इलाज प्रभावी हो सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोई भी लक्षण या जोखिम कारक दिखें, तो तुरंत चिकित्सा सलाह लें। 


गॉलब्लैडर कैंसर भले ही दुर्लभ हो अपनी आक्रामक प्रकृति और देर से पता चलने के कारण एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा है। इसके जोखिम कारक लक्षण और इलाज के विकल्पों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर जल्दी पता लगने और बेहतर परिणामों की संभावना को बढ़ाया जा सकता है। इस छिपे हुए खतरे से लड़ने के लिए समय पर हस्तक्षेप आवश्यक है। 

P.K. SHARMA

Blogging in difference subjects since 2012 and related many media companies, having experiences in this field about 12 years.

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