कैसे काम करता है हृदय का इलेक्ट्रिकल सिस्टम

कैसे काम करता है हृदय का इलेक्ट्रिकल सिस्टम

चंडीगढ़/ मोहाली: जब लोग हृदय स्वास्थ्य के बारे में सोचते हैं, तो आमतौर पर दिल का दौरा चर्चा का मुख्य विषय बन जाता है। हालांकि, हृदय रोग का दायरा इससे कहीं अधिक व्यापक है और इसमें सिर्फ कोरोनरी धमनियों में रुकावट ही शामिल नहीं होती। एक महत्वपूर्ण लेकिन कम चर्चा किया जाने वाला पहलू हृदय की इलेक्ट्रिकल इम्पल्स है, जो हृदय की धड़कन और संकेतन को नियंत्रित कर जीवन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है।


यदि आपको धड़कन का तेज़ महसूस होना, चक्कर आना, बेहोशी, सीने में अजीब सी हलचल महसूस होना जैसे लक्षण हों, तो यह एरिथमिया या सरल शब्दों में हृदय की रिदम संबंधी समस्या का संकेत हो सकता है। हल्के परिश्रम पर सांस फूलना, सीने में असहजता, या बेहोशी की घटनाएं भी हृदय की इलेक्ट्रिकल गड़बड़ियों की ओर इशारा कर सकती हैं।


बीएलके-मैक्स हार्ट और वास्कुलर इंस्टीट्यूट के चेयरमैन और एचओडी डॉ. टी. एस. क्लेर ने कहा “दुनिया में सबसे आम हृदय रिदम संबंधी समस्याओं में से एक अनियमित हृदय गति है, जिसे एट्रियल फिब्रिलेशन कहा जाता है। इसके सामान्य लक्षणों में थकान, धड़कन का तेज़ होना, सांस लेने में दिक्कत और तेज़ हृदय गति शामिल हैं। इन लक्षणों को नज़रअंदाज़ करना घातक साबित हो सकता है, क्योंकि यह ब्रेन स्ट्रोक या हार्ट फेलियर जैसी गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये समस्याएं क्यों उत्पन्न होती हैं? इसका उत्तर हृदय की अद्भुत इलेक्ट्रिकल प्रणाली में छिपा है—जो हर धड़कन को संचालित करने वाला एक अदृश्य कंडक्टर है। हृदय सिर्फ खून पंप करने वाली मांसपेशी नहीं है, बल्कि यह एक जटिल इलेक्ट्रिकल तंत्र द्वारा संचालित एक उत्कृष्ट रचना है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि आपकी हृदय गति एक नियमित रिदम में बनी रहे, जिससे शरीर में रक्त प्रवाह सुचारू रूप से चलता रहे। लेकिन जब इस रिदम में बाधा आती है, तो यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकती है।“


कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट ऐसे विशेषज्ञ होते हैं जो हृदय की इलेक्ट्रिकल गड़बड़ियों का इलाज करते हैं। ये विशेषज्ञ इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, होल्टर मॉनिटर, और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडीज़ जैसे उन्नत उपकरणों का उपयोग करके हृदय रिदम की समस्याओं का पता लगाते हैं।


डॉ. क्लेर ने आगे कहा “इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिकल परीक्षणों के माध्यम से हृदय की रिदम संबंधी विभिन्न समस्याओं का सटीक निदान किया जा सकता है। इनमें एरिथमिया शामिल है, जिसमें हृदय की गति अत्यधिक तेज़, धीमी या अनियमित हो सकती है। ECG और होल्टर स्टडी के जरिये डॉक्टर यह निर्धारित कर सकते हैं कि तेज़ हृदय रिदम,  हृदय के ऊपरी कक्ष से उत्पन्न हो रही है (सुप्रावेंट्रिकुलर टैकीकार्डिया - SVT) या निचले कक्ष से (वेंट्रिकुलर टैकीकार्डिया - VT), जिससे उचित उपचार योजना बनाई जाती है। इसी तरह, यदि किसी व्यक्ति को बार-बार चक्कर आते हैं या अस्थायी रूप से बेहोशी के एपिसोड होते हैं, तो यह धीमी हृदय रिदम का संकेत हो सकता है, जो हृदय के प्राकृतिक पेसमेकर (साइनस नोड डिसफंक्शन) की विफलता या इलेक्ट्रिकल प्रणाली में गड़बड़ी के कारण हो सकता है।“


एरिथमिया के इलाज के लिए कई प्रभावी विकल्प उपलब्ध हैं। दवाओं से अनियमित हृदय रिदम को नियंत्रित किया जा सकता है, जबकि रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन एक नॉन-सर्जिकल प्रक्रिया है जो तेज़ हृदय रिदम की समस्याओं को ठीक करने में मदद करती है। इम्प्लांटेबल डिवाइसेस में पेसमेकर धीमी हृदय गति को सामान्य करने के लिए लगाया जाता है, जबकि आईसीडी अचानक हृदय गति रुकने को रोकने में सहायक होता है। इसके अलावा, कार्डियक रीसिंक्रोनाइज़ेशन थेरेपी (CRT) हृदय के लिए पेसमेकर का कार्य करती है, पंपिंग क्षमता को बढ़ाती है, और खतरनाक एरिथमिया या हृदयगति रुकने की स्थिति में इलेक्ट्रिकल झटका देकर जीवन बचाती है।


हृदय की इलेक्ट्रिकल प्रणाली को समझना हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यदि आप शुरुआती लक्षणों को पहचानकर सही समय पर उपचार करवाते हैं, तो गंभीर जटिलताओं से बचा जा सकता है और एक स्वस्थ एवं संतुलित जीवन जीया जा सकता है।

P.K. SHARMA

Blogging in difference subjects since 2012 and related many media companies, having experiences in this field about 12 years.

Post a Comment

Previous Post Next Post