किडनी डिजीज से बचने के लिए एक्शन की जरूरत, इलाज से बेहतर है बचाव

किडनी डिजीज से बचने के लिए एक्शन की जरूरत, इलाज से बेहतर है बचाव

फोर्टिस हॉस्पिटल वसंत कुंज में नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट के प्रेसिडेंट और प्रिंसिपल डायरेक्टर के नेतृत्व में द इंडिया सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी ने क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) पर चल रही देशव्यापी स्टडीज की चौंकाने वाली रिपोर्ट साझा की. रिपोर्ट में ये सामने आया है कि हाल में सीकेडी का असर काफी तेजी से बढ़ा है. ऐसे में इस बीमारी से बचाव के लिए लोगों को अवेयर करने की जरूरत है, साथ ही उन्हें इसके इलाज के लिए उपलब्ध विकल्पों के बारे में जानकारी देने की जरूरत है.

 

पुरानी रिपोर्ट्स में ये बात थी कि सीकेडी सिर्फ 15-20 फीसदी लोगों पर ही असर डालती है लेकिन नई स्टडी से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. देशभर में करीब 1,50,000 लोगों पर की गई इस स्टडी में 31.3% लोगों में माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया का पता चला, जो सीकेडी का शुरुआती संकेत होता है. इस स्टडी में शामिल लोगों की औसत आयु 57.6 साल थी, जिसमें से 59.1% को डायबिटीज थी. ये डेटा पुरानी रिपोर्ट्स को चुनौती देते हुए ये दर्शाता है कि सीकेडी चुनौतीपूर्ण तरीके से बढ़ रहा है और विश्वभर में ये मौत का 5वां सबसे प्रमुख कारण बनकर उभर रहा है.

 

नेफ्रोलॉजी के क्षेत्र में मशहूर डॉक्टर संजीव गुलाटी ने सीकेडी के बढ़ते पर चिंता जाहिर करते हुए खासकर उन मरीजों का जिक्र किया जो एडवांस स्टेज में पहुंच जाते हैं. स्टडी से ये भी पता चला है कि सीकेडी के बढ़ने में लाइफस्टाइल कारकों का एक अहम रोल है, लिहाजा इससे बचाव के लिए अवेयरनेस और अर्ली डिटेक्शन काफी अहम है.

 

डॉक्टर गुलाटी ने सीकेडी के बारे में जानकारियों के अभाव का भी जिक्र किया, साथ ही ये भी बताया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कैसे गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं. डॉक्टर गुलाटी ने बताया कि लोगों को साइंटिफिक जानकारियां हासिल करने में चुनौतियां पेश आ रही हैं, खासकर भारतीय लोगों को. किडनी से जुड़ी बीमारियों से बचाव के लिए जरूरी है कि जानकारी के इस गैप को भरा जाए.

 

डॉक्टर गुलाटी ने कहा, ”माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया के लिए कम्यूनिटी स्क्रीनिंग नेशनल किडनी स्क्रीनिंग प्रोग्राम का हिस्सा है. डॉक्टर गुलाटी के कम्यूनिटी सर्वे से इस परीक्षण की सादगी का पता चलता है, जिसमें यूरिन डिपस्टिक का उपयोग पॉइंट-ऑफ-केयर (पीओसी) टेस्ट के रूप में किया जाता है. ये टेस्ट किडनी डैमेज से जुड़े शुरुआती संकेतों को चिन्हित करने, यूरिया और क्रिएटिनिन की वृद्धि तो पहचानने में गेम-चेंजर साबित हो सकता है.

P.K. SHARMA

Blogging in difference subjects since 2012 and related many media companies, having experiences in this field about 12 years.

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