दर्द से राहत और दोबारा चलने की आज़ादी अब रीविजन नी रिप्लेसमेंट से

दर्द से राहत और दोबारा चलने की आज़ादी अब रीविजन नी रिप्लेसमेंट से

रीविजन टोटल नी रिप्लेसमेंट – अब संभव भी है और सफल भी!

पानीपत: जीवन की असली खूबसूरती चलने-फिरने की आज़ादी में है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हम अधिक समय तक स्वतंत्र रूप से चलने-फिरने की चाह रखते हैं। लेकिन बढ़ती उम्र के साथ जोड़ों का घिसना और आर्थराइटिस जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं, जो केवल दर्द देती हैं बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती हैं। यही कारण है कि आजकल लोग घुटनों के दर्द से राहत पाने और फिर से सहज जीवन जीने के लिए नी रिप्लेसमेंट का सहारा ले रहे हैं।

 

भारत में नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की शुरुआत पश्चिमी देशों की तुलना में थोड़ी देर से हुई, लेकिन अब जब मरीजों ने इसके अच्छे परिणाम देखे हैं, तो इसका प्रचलन तेज़ी से बढ़ रहा है।

 

मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, शालीमार बाग के रोबोटिक जॉइंट रिप्लेसमेंट्स ऑर्थोपेडिक्स विभाग के डायरेक्टर डॉ. साइमन थॉमस ने बताया किकई बार लोगों को डर रहता है कि अगर किसी कारणवश घुटने का रिप्लेसमेंट फेल हो गयाचाहे वह लूज़निंग हो या इन्फेक्शनतो फिर कोई इलाज संभव नहीं है और घुटना हमेशा के लिए खराब हो जाता है। लेकिन अब तकनीकी प्रगति और अनुभवी सर्जनों की बदौलत फेल हो चुके घुटनों का इलाज संभव हो गया है। यह पीड़ित मरीजों के लिए उम्मीद की एक किरण बन चुका है।घुटने की रिप्लेसमेंट विफल हो रही हो, तो उसे जल्दी पहचानना बेहद ज़रूरी है। ऐसे मरीजों को सामान्य से ज्यादा दर्द, चलते समय असहजता, लंगड़ाकर चलना, घुटने में अस्थिरता का एहसास, आवाज़ आना, घिसाव का अहसास, गति में कमी और कभी-कभी टांके की लाइन से रिसाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

 

ऐसे लक्षणों वाले मरीजों को तुरंत किसी विशेषज्ञ रीविजन जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन से सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टर पहले फिजिकल एग्जामिनेशन के बाद एक्स-रे कराते हैं और यदि कुछ असामान्य दिखता है या घुटने के फेल होने की आशंका हो, तो आगे के टेस्ट जैसे ब्लड जांच या स्पेशल इमेजिंग की सलाह दी जा सकती है। इसके आधार पर रीविजन टोटल नी रिप्लेसमेंट की योजना बनाई जाती है।

 

अक्सर मरीज सर्जरी को टालते हैं, लेकिन यह देरी घातक हो सकती है। अगर इम्प्लांट ढीला हो गया है और उसे समय पर नहीं बदला गया, तो वह हड्डी को अंदर से नुकसान पहुंचाता रहता है, जिससे बोन लॉस हो सकता है। जितनी ज्यादा हड्डी खराब होगी, सर्जरी के दौरान उतनी ही जटिल रीकंस्ट्रक्शन की ज़रूरत होगी। अगर इन्फेक्शन है और उसे नज़रअंदाज़ किया गया, तो समय के साथ जोड़ पूरी तरह नष्ट हो सकता है। इसलिए समय रहते हस्तक्षेप करना बेहद ज़रूरी हैयह हड्डियों को बचाने और बेहतरीन परिणाम प्राप्त करने में मदद करता है।

 

डॉ. साइमन ने आगे बताया किरीविजन सर्जरी में अनुभव और अत्याधुनिक तकनीक की उपलब्धता इसकी सफलता की कुंजी है। बेहतर इम्प्लांट्स, रोबोटिक तकनीक, उन्नत सर्जिकल विधियों और विशेषज्ञ सर्जनों की मदद से अब रीविजन नी रिप्लेसमेंट बिल्कुल संभव है। अधिकतर मामलों में घुटनों को एक ही चरण में ठीक किया जा सकता है और रिकवरी भी प्राथमिक टोटल नी रिप्लेसमेंट जितनी ही अनुमानित होती है। रोबोटिक तकनीक से समर्थित रीविजन सर्जरी के कारण हड्डी का नुकसान कम होता है, चीरा छोटा लगता है, दर्द कम होता है, खून की कमी कम होती है, अस्पताल में कम दिन रहना पड़ता है और मरीज जल्दी अपनी सामान्य गतिविधियों में लौट सकता है।

 

अब रोबोटिक तकनीक से समर्थित रीविजन टोटल नी रिप्लेसमेंट, प्राकृतिक जोड़ के काफी करीब परिणाम दे सकता हैजिससे मरीज पहले की तरह जीवन जीने में सक्षम हो सकते हैं।

P.K. SHARMA

Blogging in difference subjects since 2012 and related many media companies, having experiences in this field about 12 years.

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