ब्रेन और स्पाइन की चोट: छुपे हुए खतरे और सही इलाज की ज़रूरत

ब्रेन और स्पाइन की चोट: छुपे हुए खतरे और सही इलाज की ज़रूरत

ब्रेन और स्पाइन की चोटें शरीर की सबसे गंभीर चोटों में से एक हैं, जो लंबे समय तक प्रभाव डाल सकती हैं। ये अक्सर दुर्घटनाओं, गिरने या खेल के दौरान लगने वाली चोटों के कारण होती हैं। इनसे बचाव और सही समय पर इलाज से मरीज की सेहत को सुरक्षित रखा जा सकता है। 

 

ब्रेन और स्पाइन की चोट का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इनकी गंभीरता हमेशा तुरंत समझ नहीं आती। किसी भी बड़ी दुर्घटना या चोट के बाद बाहरी रूप से कोई चोट न दिखने पर लोग इस समस्या को हल्के में ले सकते हैं। लेकिन अंदरूनी ब्लीडिंग या सूजन, जो ब्रेन या स्पाइन के आसपास हो सकती है, धीरे-धीरे खतरनाक स्थिति तक पहुंच सकती है। 

 

ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजरी (TBI) मामूली कन्कशन से लेकर गंभीर स्थितियों तक हो सकती है, जैसे ब्रेन में सूजन या इंट्राक्रैनियल हेमरेज। इसके लक्षणों में लगातार सिर दर्द, भ्रम, या बेहोशी शामिल हो सकते हैं, जो कई बार चोट के घंटों या दिनों बाद भी उभर सकते हैं। इसी तरह, स्पाइन की चोटें भी तुरंत दर्द या लकवे का संकेत नहीं देतीं, लेकिन बाद में कमजोरी या चलने-फिरने की क्षमता खोने जैसी समस्याएं पैदा कर सकती हैं। 

 

डॉ. अमित श्रीवास्तव, जो यथार्थ अस्पताल, ग्रेटर नोएडा में न्यूरोलॉजी विभाग के डायरेक्टर और प्रमुख हैं, कहते हैं, “ब्रेन और स्पाइन की चोटों का समय पर इलाज होना बेहद जरूरी है। सही समय पर की गई जांच और इलाज से न केवल मरीज की जान बचाई जा सकती है, बल्कि भविष्य में होने वाली गंभीर समस्याओं से भी बचा जा सकता है। इलाज में देरी खतरनाक हो सकती है, भले ही बाहरी चोटें मामूली क्यों न दिखें। 

 

ब्रेन और स्पाइन की चोट के साथ आने वाले अन्य जोखिम भी गंभीर हो सकते हैं। संक्रमण और सूजन जैसे मामलों से रिकवरी का समय लंबा हो सकता है। कई बार चोट के कारण खून की नसों में कमजोरी से एनीरिज्म या स्ट्रोक जैसी समस्याएं हो सकती हैं। 

 

इन चोटों के लिए समय पर जांच और इलाज बेहद जरूरी है। सीटी स्कैन, एमआरआई और एंजियोग्राफी जैसे आधुनिक तरीकों से अंदरूनी चोटों की पहचान की जा सकती है। जरूरत पड़ने पर न्यूरोसर्जरी के माध्यम से खून का बहाव रोका जा सकता है, ब्रेन या स्पाइन की सूजन को कम किया जा सकता है, और हड्डियों को स्थिर किया जा सकता है। 

 

सही इलाज के साथ-साथ रिहैबिलिटेशन प्रक्रिया भी महत्वपूर्ण है। फिजियोथेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी और मानसिक सहयोग से मरीज चलने-फिरने की क्षमता दोबारा पा सकते हैं और दर्द व मानसिक दबाव को कम कर सकते हैं। 

 

इन चोटों से बचाव के लिए सतर्कता सबसे अच्छा उपाय है। खेल के दौरान सही सुरक्षा उपकरणों का उपयोग, सड़क सुरक्षा नियमों का पालन, और बुजुर्गों के लिए घर को सुरक्षित बनाना जरूरी है। साथ ही, जागरूकता अभियान लोगों को यह समझने में मदद कर सकते हैं कि किसी भी चोट के बाद तुरंत डॉक्टर से परामर्श करना क्यों जरूरी है। 

 

न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी में प्रगति के कारण अब मरीजों को तेजी से और प्रभावी इलाज मिल रहा है। लेकिन यह समझना जरूरी है कि समय पर जांच और इलाज ही सफल परिणाम की नींव है। अगर किसी को चोट लगती है, तो तुरंत मेडिकल सहायता लें, भले ही बाहरी चोट न दिखे।

P.K. SHARMA

Blogging in difference subjects since 2012 and related many media companies, having experiences in this field about 12 years.

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